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गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र

 

पक्षी कहते हैं- पहलेकी बात है, त्रेतायुग में हरिश्चन्द्र नामसे प्रसिद्ध एक राजर्षि रहते थे। वे बड़े धर्मात्मा, भूमण्डलके पालक, सुन्दर कीर्ति से युक्त और सब प्रकार से श्रेष्ठ थे। उनके राज्यकाल में कभी अकाल नहीं पड़ा, किसीको रोग नहीं हुआ, मनुष्योंकी अकालमृत्यु नहीं हुई और पुरवासियोंकी कभी अधर्ममें रुचि नहीं हुई। उस समय प्रजावर्गके लोग धन, वीर्य और तपस्याके मदसे उन्मत्त नहीं होते थे। कोई भी स्त्री ऐसी नहीं देखी जाती थी, जो पूर्ण यौवनावस्थाको प्राप्त किये बिना ही सन्तानको जन्म देती रही हो। एक दिन महाबाहु राजा हरिश्चन्द्र जंगलमें शिकार खेलने गये थे। वहाँ शिकारके पीछे दौड़ते हुए उन्होंने बारंबार कुछ स्त्रियोंकी कातरवाणी सुनी। वे कह रही थीं, 'हमें बचाओ, बचाओ।' राजाने शिकारका पीछा छोड़ दिया और उन स्त्रियोंको लक्ष्य करके कहा-'डरो मत, डरो मत। कौन ऐसा दुष्टबुद्धिवाला पुरुष है जो मेरे शासनकाल में भी ऐसा अन्याय करता है?' यों कहकर स्त्रियोंके रोनेके शब्दका अनुसरण करते हुए राजा उसी ओर चल दिये।

इसी बीचमें प्रत्येक कार्यके आरम्भमें बाधा उपस्थित करनेवाला रुद्रकुमार विघ्नराज इस प्रकार सोचने लगा- 'ये महर्षि विश्वामित्र बड़े पराक्रमी हैं और अनुपम तपस्याका आश्रय लेकर उत्तम व्रतका पालन करते हुए उन भवादि विद्याओंका साधन करते हैं, जो पहले इन्हें सिद्ध नहीं हो सकी हैं। ये महर्षि क्षमा, मौन तथा आत्मसंयमपूर्वक जिन विद्याओंका साधन करते हैं, वे उनके भयसे पीड़ित होकर यहाँ विलाप कर रही हैं। इनके उद्धारका कार्य मुझे किस प्रकार करना चाहिये?' इस प्रकार विचार करते हुए रुद्रकुमार विघ्नराजने राजाके शरीरमें प्रवेश किया। उनके आवेशसे युक्त होनेपर राजाने क्रोधपूर्वक ये बात कही-'यह कौन पापाचारी मनुष्य है, जो कपड़ेकी गठरीमें अग्निको बाँध रहा है? बल और प्रचण्ड तेजसे उद्दीप्त मुझ राजाके उपस्थित रहते हुए आज कौन ऐसा पापी है, जो मेरे धनुषसे छूटकर सम्पूर्ण दिशाओंको देदीप्यमान करनेवाले बाणोंसे सर्वाङ्ग में छिन्न-भिन्न होकर कभी न टूटनेवाली निद्रा में प्रवेश करना चाहता है?'

राजा की यह बात सुनकर तपस्वी विश्वामित्र कुपित हो उठे। उनके मनमें क्रोधका उदय होते ही वे सम्पूर्ण विद्याएँ, जो स्त्रियोंके रूपमें रो रही थीं, क्षणभरमें अन्तर्धान हो गयीं। तदनन्तर राजाने उन तपस्या के भण्डार महर्षि विश्वामित्र की ओर दृष्टिपात किया तो वे बड़े भयभीत हुए और सहसा पीपलके पत्तेकी भाँति थरथर काँपने लगे। इतने में विश्वामित्र बोल उठे- 'ओ दुरात्मा! खड़ा तो रह।' तब राजाने विनयपूर्वक मुनिके चरणोंमें प्रणाम किया और कहा- 'भगवन्! यह मेरा धर्म था। प्रभो! इसे आप मेरा अपराध न मानें। मुने! अपने धर्मकी रक्षामें लगे हुए मुझ राजापर आपको क्रोध नहीं करना चाहिये। धर्मज्ञ राजाको तो यह उचित ही है कि वह धर्मशास्त्र के अनुसार दान दे, रक्षा करे और धनुष उठाकर युद्ध करे।'

विश्वामित्र बोले- 'राजन्! यदि तुम्हें अधर्म का डर है, तो शीघ्र बताओ-किसको दान देना चाहिये? किनकी रक्षा करनी चाहिये और किनके साथ युद्ध करना चाहिये?

हरिश्चन्द्रने कहा- श्रेष्ठ ब्राह्मणों को तथा जिनकी जीविका नष्ट हो गयी हो, ऐसे अन्य मनुष्यों को भी दान देना चाहिये। भयभीत प्राणियों की रक्षा करनी चाहिये और शत्रुओं के साथ सदा युद्ध करना चाहिये।*

* दातव्यं विप्रमुख्येभ्यो ये चान्ये कृशवृत्तयः।
रक्ष्या भीताः सदा युद्धं कर्तव्यं परिपन्थिभिः ॥
(७।२०)

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    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

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